मज़हब-ए-इस्लाम में हदीस का मकाम क्या है ?
ज़माना-ए-नबुवत से आज तक तमाम मुसलमानों का यही अकिदा रहा है कि अहकाम-ए-शरीयत की दलीलों में से सबसे मुकदम "पहले" और सबसे आला "ऊंचा मकान" खुदा की मुकद्दस किताब कुरान मजीद है। क्योंकि कुरान ही की तसरीहात-व-हिदायात के साथ हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की इत्तिबा-व-इताअत (पीछे पीछे चलना, अहकाम को मानना) भी हर मुसलमान के लिए लाजिम-उल-ईमान और वाजिब उल अमल है। क्योंकि बेगैर इसके कुरान मजीद की आयतों के सही मफहूम और हकीकी मुराद को समझ लेना गैर मुमकिन और मुहाल है।
इसलिए कुरान मजीद के बाद अहकाम-ए-शरीयत की दलित बनने में हदीस ही का दर्जा है। इसके बाद इजमा-ए-उम्मत और क़यास-ए-मुज्ताहिद का दर्जा है।
इसलिए यह अकीदा रखना जरूरियात-ए-दिन में से है। कि कुरान मजीद और हदीस दोनों ही इस्लाम मजहब की मरकज़ी बुनियाद और अहकाम-ए-शरअ की मज़बूत दलीलें हैं।
कुरआन मानने वाले
मंसब रिसालत
दोस्तों ! हकीकत तो यह है कि जो लोग हदीसों के शरीयत की दलील होने का इनकार करते हैं, वह हकीकत में मकाम-ए-नबूवत व मनसत-ए-रिसालत (यानी अल्लाह का अपने हबीब मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नबूवत और रिसालत अता करने का जो मनसब है) से ही इनकार करने वाले हैं। उन लोगों के नजदीक रसूल की हैसियत सिर्फ एक कासीद और एलेची की जैसी है। हालांकि अल्लाह का कुरान मजीद ने साफ-साफ और आसान लफ्जों में उस मूलहिदाना नजरिया और काफिराना बकवास की जड़ ही काट डाली है। चुनांचे कुरान मजीद का एक इरशाद-ए-ग्रामी है। तर्जुमा : जिसने रसूल की इताअत "पैरवी" कि उसने अल्लाह ताला की इताअत की (सूरह निसा, आयत नंबर : 80)
अल्लाह रब्बुल इज्जत क़ुरआन-ए-अज़ीम की दूसरी एक और जगह इरशाद फरमाता है। तर्जुमा : हमने जिस रसूल को भी भेजा इसीलिए भेजा ताकि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताअत करें।
इसी तरह रब तबारक व ताला का दूसरी जगह इरशाद-ए-ग्रामी है। यहां पर सिर्फ तर्जुमा लिखा जा रहा है : रसूल लोगों को नेकी का हुक्म देते हैं और बदी से मना करते हैं और लोगों के लिए साफ-सुथरी चीजों को हलाल फरमाते हैं और गंदे चीजों को हराम फरमाते हैं।
क़ुरआन ने फरमाया
अज़ीज़ दोस्तों ! अभी-अभी आपने पुराने अजीम की ऊपर में लिखे हुए आए तो का तर्जुमा पड़ा और इस किस्म की दूसरी बहुत सी आए थे करीमा ऐलान कर रही है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम एक काशीद और इलायची की पोजीशन में नहीं हैं। बल के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो सल्लम का मनसब-ए-रिसालत इस कदर बुलंद ओ बाला है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम मुक्तदा और मुताअ हैं। रसूल अल्लाह हलाल और हराम बताने वाले हैं। रसगुल्ला हातिम और हुकुम देने वाले हैं। रसूल मुअल्लिम और शारीअ हैं।
प्यारे मुसलमानों ! इन लोगों के बहकावे में ना आओ वरना ईमानदार हो जाएगा। आप खुद जरा सोचें तो सही कहीं कासीद और इलायची की भला यह शान हुआ करती है ? जो आपने ऊपर पढ़ा है।
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हदीस से इनकार करने वालों का अंजाम।
मुनकिरीन-ए-हदीस का अंजाम
दोस्तों ! मोहब्बताना मैं आपसे यह कहना चाहूंगा कि आप इस बात को भी ध्यान में रखिए ! कि मुनकिरीन-ए-हदीस (यानी हदीस का इनकार करने वाले) ने किसी दीनी जज्बा की वजह से कुरान पर अमल और हदीसों के इनकार का ऐलान नहीं किया है बल्कि उस फितना-व-फसाद से उनका गलत मकसद यह है कि हदीसों का इनकार करके कुरान के मानी और मतलब बयान करने में वह तशरिहात-ए-नबूवत की मुकद्दस हद-बनदियों से (वह हदीस ए रसूल को इनकार करने के बाद आगे बढ़ना चाहते हैं ताकि बाद में वह कुरान के तर्जुमा करने में हदीसों में ना घेरे जाए।) आजाद हो जाए और बिलकुल आवारा होकर कुरान मजीद के मफ़हूम व मुराद को अपनी नफ़सानी ख्वाहिशों के मुताबिक ढाल सकें। और कुरान की तर्जुमानी करने में अपनी मनमर्जी तहरीर कर सकें। चुनांचे इस सिलसिले में एक लतीफा बहुत ही दिलचस्प भी है और निहायत ही इबरत खेज़-व-नसीहत आमोज़ भी।
मुनकिरीन-ए-हदीस, हनफ़ी आलिम का मुनाजरा।
लतीफा : एक हदीस का इनकार करने वाला शख्स खामखा किसी हनफी आलिम से उलझ गया और कहने लगा कि कुरान में "अक़ीम-उस-सलात" के माना मौलवियों ने जो नमाज पढ़ना बताया है वह गलत है। क्योंकि लोग़त में "सलात" के माना दुआ मांगने के हैं। तो लिहाजा "अक़ीम-उस-सलात" का यही मतलब हुआ कि पाबंदी के साथ दुआ मांगते रहो।हकीकत क्या है
हनफ़ी आलिम की यह गजब-नाक और लाजवाब बात सुनकर वह मुनकीर-ए-हदीस वहां से भाग निकला।
बहरे हाल दोस्तों हकीकत तो यही है कि इस्लामी मजहब, दीने मजहब में अहादीस-ए-रसूल की अहमियत का यह आलम है कि बगैर आहादीसों के कुरान मजीद का समझना नामुमकिन और मुहाल है। यहां तक कि कुरान मजीद का कलामे इलाही होना भी नहीं मालूम हो सकता। अगर रसूल अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम यह ना फरमा देते कि "अल्हमदु" से "वन-नास" तक का पूरा कलाम "कुरान मजीद" और कलामे इलाही है। तो कयामत तक कोई जान नहीं सकता था कि कौन "अल्लाह का कलाम है" और कौन रसूल अल्लाह का कलाम है।
लिहाजा ! हर मुसलमान भाई को इस हक़ीक़त पर पूरा पूरा ईमान रखना चाहिए कि शरीयत के मसाइल की दलीलों में कुरान शरीफ के बाद "हदीस शरीफ" ही का दर्जा है और बगैर आहादीस-ए-रसूल पर ईमान लाए ना कोई कुरान के माना और मतलब को समझ सकता है और ना कोई इस्लाम दिन पर अमल कर सकता है।
इसलिए इस ज़माने में जो लोग हदीसों के ख़िलाफ़ इलम-ए-बगावत बुलंद किए हुए हैं मुसलमानों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह लोग गुमराह, बद मज़हब बलकि कुछ लोग तो मुलहिद और मुरतद हो चुके हैं।
दूसरे मजहब के जलसे में जाना कैसा है ?
लिहाजा आप मुसलमान भाइयों को इस बात से आगाह करना चाहूंगा कि आप लोग इन जैसे लोगों की लिखी हुई किताब और इन लोगों के तकरीरों में शामिल होना यह ओलामा-ए-अहले सुन्नत के नज़दीक हराम और नाजायज है। मुसलमानों पर जरूरी है कि उनकी सोहबत से बचे और हमेशा गलत सोहबत से इजतिनाब-व-परहेज को लाजिम पकड़े। यही हुक्म उन तमाम लोगों के लिए है जो गुस्ताख ए रसूल हैं और अलग-अलग फिरको में वह अपने आप को मुसलमान कहते हैं जो कि हकीकत में मुसलमान नहीं हैं। और इन लोगों की किताबों के मुतालिक भी यही हुक्म है। चाहे यह लोग कितनी ही मक्कारी से अपने ऊपर हनफ़ी शाफ़ई का बैनर बनवा कर अपने मजहब पर चिपका क्यों ना लें।
नोट :
नोट : अज़ीज़ दोस्तों ! मैं आप भोले भाले मुसलमान भाइयों से कहूंगा कि आप इस्लाम मजहब को समझने की कोशिश करें ! और किसी बड़े आलिम से तालुक करके मालूम करें। जब आपको जवाब सही से ना मिले तो आप किसी और हनफ़ी से राब्ता करें। दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि हनफ़ी आलिम ही से क्यों ? किसी दूसरे फिरके के आलिम से पूछ सकते हैं। दोस्तों आप पूछ सकते हैं लेकिन मैं आपको एक तरीका बताओ। आप हर आलिम की बातों को अपनी कॉपी में नोट करें फिर बाद में उसे सोच कर मिलाएं आखिर क्या होना चाहिए। मैं तो ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता अगर रब ने तौफीक दी तो सही इस्लाम को समझने में और उस पर चलने पर आपको आसानी होगी और अच्छे से समझ सकेंगे। वरना मेरे जैसे क्या तकदीर में ईमान ना लिखा हो तो फिर कोई बड़े से बड़े आलिम क्यों ना हो वह आपको रास्ते पर नहीं ला सकते हैं।
ज़रूरी बात
मालदार जमींदार शोहरत याफ्ता जिंदगी होना जरूरी नहीं है बल्कि यह मतलब रखता है कि यह मालदारी जमीन दारी शोहरत कैसी है। इसी तरह मुसलमान के लिए सिर्फ नमाजी रोजा जकात हज पर पाबंदी और यतीमों बेवावों मिस्कीनो के साथ हुस्न-व-सुलूक करना काफी नहीं है बल्कि असल चीज यह है कि (इन चीजों को जो मैंने ऊपर लिखा) इनका हम तक लाने वाले कौन हैं ? उनके बारे में कैसा अकीदा रखा जाए यह असल मतलब बनता है। क्योंकि दुनिया का यह कानून है उसी इंसान से खबर को लोग यकीन कर लेते हैं जिस इंसान पर यकीन होता है वरना झूठे लोगों की खबर पर कोई यकीन नहीं करता। जब झूठे लोग पर कोई यकीन नहीं करता है तो उनकी बताई हुई खबर को कैसे वह लोग मानेंगे। मेरा कहने का मतलब खुलासा यह है जब तक कोई इंसान खबर लाने वाले के बारे में सही अकिदा नहीं रखेगा, सही सोच नहीं सोचेगा, तो उनके जरिए भेजी हुई खबर को वह कैसे मान सकते हैं। इंसान के जेहन में यह सवाल आ सकता है हो सके उसने खबर में कोई तब्दीली कर दी हो तो इसकी वजह से लोग शक में पड़ जाएंगे। तो सबसे पहले जरूरी यह है हमें अपना अकीदा को दुरुस्त कैसे किया जाए। यहां पर आपको जरा सोचने की जरूरत है।
🔰 ख़ुदा हाफ़िज़ 🔰
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