Ticker

6/recent/ticker-posts

Ad Code

Biography of Imam Mohammed || इमाम मोहम्मद बुखारी की हालत ए जिंदगी।

Who is Author, Writer of Bukhari Sharif.

अज़ीज़ दोस्तों ! आज की इस पोस्ट में जानने वाले हैं हजरत इमाम बुखारी अलेही रहमां की हालत ए जिंदगी (आप कब पैदा होए और किस उम्र में इस दुनिया से रुखसत हुए, आपके वालीदैन और आपके असातज़ा) के बारे में मुख्तसर अंदाज में बात करने वाले हैं। जैसा कि आपको पता होगा इमामी बुखारी अलैही रहमां कौन हैं और किसे कहते हैं। अगर आपको मालूम ना हो तो आप इस पोस्ट को आखिर तक जरूर पढ़ें इंशा अल्लाह आप ज़रूर समझ जाएंगे। How did Imam Bukhari collected hadith.


Biography of Imam Mohammed by RBN Wikipedia


सिहा-ए-सित्ता क्या होता है ?

दोस्तों ! सिहा-ए-सित्ता यह अरबी अल्फाज हैं जिन का मतलब यह होता है। इस्लाम मजहब में कुरान को समझने के लिए जिन किताबों में हदीसों को सही सनद के साथ जमा करने के बाद किताबों की सूरत में उम्मते मोहम्मदिया तक पहुंचाया गया और इन किताबों को कुरान के बाद इस्लाम की दलील के लिए और कुरान को समझने के लिए दूसरा मर्तबा हासिल है। आसान अल्फाज ने इस तरह समझे। सिहाह : यह एक अरबी लफ्ज़ है इसका माना "सही" होता है, और यह सही की जमा "सिहाह" है। और इसमें दूसरा लफ्ज़ सित्ता है : यह एक फारसी लफ़्ज़ है जिसका माना 6 होता है। यानी इसका खुलासा मतलब यह हुआ इस्लाम मजहब में कुरान के बाद दूसरे मर्तबा पर इन छ किताबों को दलील के लिए माना जाता है।  


हज़रत इमाम बुखारी अलैही रह्मा कौन हैं ? 

प्यारे दोस्तों ! जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा उन छ किताबों में से जिनको बड़ा मर्तबा और मकबूलियत का दर्जा "पोस्ट" मिला है वह हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां की लिखी हुई किताब बुखारी शरीफ है। यानी बुखारी शरीफ के राइटर हज़रत ए इमाम बुखारी हैं। तो आज की पोस्ट में इनकी जिंदगी के हालात (Biography) के बारे में पढ़ेंगे।


इमाम बुखारी का नाम क्या है ? 

हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां की कून्नीयत अबू अब्दुल्लाह और नाम-व-नसब मोहम्मद बिन इस्माइल बिन इब्राहिम बिन मुग़ैय्यरा बुखारी जअफ़ी है। यानी आपका नाम मोहम्मद है और आपके वालिद मोहतरम का नाम : इस्माइल | और दादा का नाम : इब्राहिम | इनके वालीदे मोहतरम का नाम यानी इब्राहिम के वालिद का नाम : मुग़ैय्यरा बुखारी जअफ़ी है। आपके परदादा मुग़ैय्यरा "हाकिम बुखारा"__"यमान जाफ़ी" के हाथ पर मुशर्रफ ब-इस्लाम हुए। यानी उनकी वजह से इस्लाम कुबूल किए। और चुके उस जमाने का यह दस्तूर था कि जो शख्स किसी के हाथ पर मुसलमान होता था तो उसकी उसी कबीला की तरफ निस्बत किया करते थे। इसलिए इमाम बुखारी को भी दुनिया के लोग "जाफ़ी" कहने लगे।


इमाम मोहम्मद बुखारी कब पैदा हुए और कब इंतकाल किए ? 

Imam Bukhari date of birth in hijri इमाम बुखारी 13 शव्वाल 194 हिजरी को जुम्मा के दिन बाद नमाज ए जुमा पैदा हुए। और आप 62 वर्ष की उम्र में Saturday ईद उल फितर की रात में ईशा की नमाज के वक्त 256 हिजरी में वफात पाई। और "खरतंग" नाम के एक गांव में जोके सिमर कन्द से 10 मील के फासले पर है जहां पर आपको दफनाए गए। 

इमाम बुखारी की जिंदगी कैसे गुजरी ? 

आप जब पैदा हुए तो बचपन ही में आप नाबीना हो गए थे। मगर आपकी वाल्दा "अम्मी जान" ने अल्लाह की बारगाह में आप की बिनाई के लिए दुआ की। तो अल्लाह ताला आपकी मां की दुआओं के सदके फिर से आपको बसारत अता फरमा दी। तो आप देखने लग गए। 


इमाम बुखारी को क्या चीज़ का शौक था ? 

हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां को बचपन ही से हदीसों को याद करने का बहुत शौक था। और आपका हाफिजा बेहद कवी और मजबूत था। 10 वर्ष की उम्र में हदीसें याद करने लगे। यहां तक कि आपने 16 वर्ष की उम्र में हजरत ही अब्दुल्लाह बिन मुबारक (यह हज़रत इमाम ए आज़म अबू हनीफा के शागिर्द हैं) की तमाम किताबों को याद कर डाला। 


इमाम बुखारी का हज के लिए जाना।

हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां अपनी वाल्दा मोहतरमा और अपने भाई अहमद बिन इस्माइल के साथ हज के लिए गए। हज के बाद आपकी वाल्दा और भाई दोनों वापस अपना वतन आ गए। मगर आप हज्जाज में हदीस पढ़ने के लिए ठहर गए।

इमाम बुखारी को कितने अहादीस याद थे ?

वहां पर यानी जब इमाम बुखारी अपनी मां और भाई के साथ हज के लिए गए हुए थे तो वहीं पर तमाम इल्मी दर्शकों का सफर करके 1080 असातजा "Islamic Teachers" की खिदमत में हाजिरी देकर 600000 हदीस ओं को जवानी याद कर लिया। 

इमाम बुखारी हदीस के लिए कहां कहां गए ?

मेरे अजीज दोस्तों ! हजरत इमाम बुखारी रहमतुल्ला अलैह जब अपनी वाल्दा और भाई के साथ हज के लिए गए हुए थे तो वहीं पर यानी मक्का तुल मुकर्रमा में हदीस के लिए रुक गए हैं। फिर मदीना मुनव्वरा, कूफ़ा, बसरा, बगदाद, मिस्र, वासित, अल-जज़ाइर, श्याम, ब्लख़, बुखारा, मर्रैव, निशापुर दोस्तों इनके अलावा और बहुत जगह हदीसओं के लिए आप गए और वहां के बड़े इल्मी मराकिज़ का बार-बार सफर फरमाया। 


इमाम बुखारी कितनी किताबें लिखी हैं ?

हजरत ए इमाम बुखारी रहमतुल्ला अलैह ने बहुत सी किताबें तस्नीफ फरमाई हैं। दोस्तों मैं यहां पर उन किताबों का नाम नहीं बताऊंगा मगर आप इमाम बुखारी की उन तमाम किताबों में से एक किताब "सही-उल-बुखारी शरीफ" बहुत शानदार और बुलंद पाया हदीस की किताब है। जो सिहा-ए-सित्ता मैं सबसे बड़ी और अज़ीम-उश-शान किताब है। जिस किताब को 60,0000 हदीस ओं में से इंतखाब करके 12 बरस की कड़ी मेहनत उठाकर आपने बुखारी शरीफ किताब को तहरीर फरमाया। 

बुखारी शरीफ में कितनी अहादीस हैं ?

बुखारी शरीफ में कुल्हाड़ी से 9082 हदीसे हैं। जब कि मुकर्ररात व मुअल्लिक़ात और मुताबिआत को शामिल करके शुमार की जाए तो 9082 हदीसें होते हैं। और मुकर्ररात को हज़फ़ "छोड़" करके गिनती की जाए तो सही बुखारी शरीफ की कुल हदीसों की तादाद सिर्फ 2761 रह जाती है। 


इमाम बुखारी के शागिर्द कितने थे ?

हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां जब से हदीसों का दरस देने लगे थें उस वक्त से लेकर आखिर तक आपके तमाम शागिर्द को शुमार किया जाए तो उनकी तादाद 90,000 हैं। यह तमाम के तमाम शागिर्द आपसे सही बुखारी शरीफ का दरस लिया है और आपने खुद इन विद्यार्थियों को बुखारी शरीफ को बिलावासता आपने पढ़ाया। आपके इन तमाम शागिर्द में से सबसे आखिरी शागिर्द का नाम : मोहम्मद बिन युसूफ फरबरी हैं। मोहम्मद बिन यूसुफ़ 320 हिजरी में वफात पाई। 


इमाम बुखारी निशापुर क्यों गए।

बुखारा में 1 दिन ऐसा हुआ कि अमीरे बुखारा (बुखारा शहर के सल्तनत मंद लोग) खालिद बिन अहमद ज़हली के लड़कों को आपने उस के दरबार में हदीस पढ़ाने के लिए तशरीफ़ नहीं ले गए। तो खालिद बिन अहमद ज़हली ने आप को बुखारा से शहर ए बदल कर दिया। और आप बुखारा को छोड़कर निशापुर तशरीफ़ ले चले गए। 


निशापुर में क्या हुआ ? 

हजरत इमाम बुखारी अलैही रहमां जब बुखारा छोड़कर निशापुर तशरीफ ले आए। तो यहां आने के बाद यहां के हाकिम बहुत ही त्कब्बुर और घमंड वाले थे जिसकी वजह से आपकी उन लोगों से नहीं बनती थी तो मजबूरन आप एक छोटे से गांव जिसका नाम : ख़रतंग है। आप वहां जाते, वहीं बैठ कर हदीस ओं का दरस देने लगे। इमाम बुखारी ख़रतंग में इतने दिन रुके यहां तक कि उसी गांव में आपकी वफ़ात हो गई। 


कब्र की मिट्टी से खुशबू ।

हजरत इमाम बुखारी रहमतुल्ला अलैह को जब दफन करके लोग वापस आए। तो आप की कब्र की मिट्टी से मुश्क की खुशबू आने लगी। चुनांचे कुछ मुद्दतों तक यह सिलसिला जारी रहा कि लोग बहुत दूर दराज से आप की कब्र पर आकर आपकी कब्र की मिट्टी को खुशबू की वजह से उठा ले जाते थे। 

इमाम बुखारी ने गीबत की ?

मेरे अज़ीज़ दोस्तों ! हजरत इमाम बुखारी रहमतुल्ला अलैह निहायत जाहिद-व-परहेज़गार और तकवा वाले इबादत गुजार थे। अपनी पूरी जिंदगी भर किसी शख्स की ग़ीबत नहीं की। अपने दौड़ के बड़े-बड़े अमीर और बादशाहों के दरबारों में कभी नहीं गए। दरसे हदीस के बाद फाजिल औकात में ज़्यादा से ज़्यादा नवाफिल नमाज़ और कुरान शरीफ की तिलावत में मशगूल रहते थे। 

रब्बे कायनात उनकी कब्र पार्क पर रहमत मनवार की बारिश अता फरमाए। उनके सदके उनकी लिखी हुई किताबों की समझ आता फरमाए। 



Post a Comment

0 Comments

Ad Code