दोस्तों ! आज के इस पोस्ट में जानेंगे मुस्लिम शरीफ किसने लिखा है, और इमामी मुस्लिम की हिस्ट्री यानी हालाते जिंदगी के बारे जानेंगे। और इमामे मुस्लिम हदीस पढ़ने के लिए कहां कहां गए, रहने वाले कहां के थे और कब इंतकाल हुए हैं यही सारी चीजें पढ़ने वाले हैं।
इमामे मुस्लिम नाम व नसब क्या है ?
हज़रत इमाम ए मुस्लिम अलैहि रहमान : आपकी कुन्नियत अबुल हसनैन और नाम व नसब : मुस्लिम बिन हज्जाज बिन मुस्लिम है। और आपका लखन असाकर उद्दीन है। आप बनी कशिरी क़बीला की तरफ निस्बत होने की वजह से लोग आप को "कशिरी" कहते थे।
इमामे मुस्लिम कौन हैं ?
हजरत इमाम ई मुस्लिम सीहाह-ए-सित्ता और हदीस के जलील उल कदर इमामो में से शुमार किए जाते हैं। यानी आपकी जमा किए हुए हदीसे मुबारका, जो कि अभी मुस्लिम शरीफ की सूरत में मौजूद है। वह अभी उम्मते मुस्लिमा के लिए काफी अच्छी मदद है इस्लाम को समझने के लिए। और इस किताब को इमामे मुस्लिम ने बहुत मेहनत मशक् मिला हैकत से हादसों को इकट्ठा करके मिश्का शरीफ की सूरत में हम लोगों की रहनुमाई फरमाइए हैं। अल्लाह इनके दरजात को बुलंद अता फरमाए।
इमामे मुस्लिम कहां के रहने वाले थे ?
हज़रत इमामे मुस्लिम बिन हज्जाज निशापुर के रहने वाले थे। जो कि खुरासान मुल्क का एक बहुत ही खूबसूरत और मरदम ख़ेज़ शहर है। उसी शहर निशापुर में हज़रत ए इमामे मुस्लिम रहते थे।
इमामे मुस्लिम की पैदाइश-ए-तारीख क्या है ?
हजरत इमाम ए मुस्लिम अलैही रहमां की विलादत के सिलसिले में मुअर्रिख़ीन का खिलाफ है। किसी का कौल है 202 हिजरी में पैदा हुए। और कुछ लोगों ने आपकी तारीख़-ए-पैदाइश के बारे में यह कहा है कि आप 204 हिजरी में पैदा हुए। और कुछ लोगों ने कहा कि आप 206 हिजरी में पैदा हुए। यानी विलादत के सिलसिले में इख्तिलाफ है। मगर आप की वफात की तारीख पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तिफ़ाक़ है। हर एक का यही क़ौल मिलता है कि 24 रजब 261 हिजरी में आपका विसाल हुआ।
मुस्लिम शरीफ किसने लिखा है ?
मेरे अजीज दोस्तों ! जैसा कि आपको पता है कि मुस्लिम शरीफ किताब को कितना बड़ा मुकाम हासिल है। और आप जरूर सोच रहे होंगे कि इनके मुसन्निफ़ यानी लिखने वाला कौन हैं ? मुस्लिम शरीफ के मुसन्निफ़ का नाम : मुस्लिम बिन हज्जाज बिन मुस्लिम है।
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इमामी मुस्लिम हदीस के लिए कहां कहां गए ?
हजरत ए इमामे मुस्लिम बिन हज्जाज बिन मुस्लिम बहुत सारी किताबें तस्नीफ फरमाई हैं। उन किताबों में से एक हदीस की किताब को बहुत मकबूलियत हासिल हुई। जिस किताब को सीहाह-ए-सित्ता में शुमार की जाती है। यानी इमामे मुस्लिम की किताब मुस्लिम शरीफ को दीन ए इस्लाम समझने के लिए कुरान के बाद दूसरा दर्जा मिला है। आप इन हदीसों की तलब में कभी इराक, हजाज़, शाम, मिस्र और दूसरे शहरों में जाकर वहां के आला इल्मी मराकिज़ में हदीस पढ़ाने के बाद आपने उन्हीं हदीसों को जमा किया। और उसका नाम सही मुस्लिम शरीफ रखा है।
इमामे मुस्लिम के उस्ताद "Teacher" कौन है ?
अज़ीज़ दोस्तों ! इमामे मुस्लिम जिन उस्तादों के पास हदीस पाक पड़ा उनमें से कुछ उस्ताद के नाम यह है : इमाम अहमद बिन हंबल, यहीया-बिन-यहीया निशा पूरी, क़ैक़बा-बिन-सईद, इसहाक बिन राहविया, अब्दुल्लाह बिन मुस्लिमा कअंबी वगैरह सैकड़ों अइम्म-ए-हदीस हैं। और इमामे तिर्मीजी व अबू बकर बिन खोजेमा जैसे हदीस के पहाड़ों ने आपकी शागिर्दी इख्तियार की। यानी इन्होंने हदीस में पहाड़ की तरह महारत रखते थे, इसके बावजूद आपके पास यानी इमामे तिर्मीजी के शागिर्दी में पढ़े हैं।
इमामे मुस्लिम को कितनी हदीसे याद थी ?
हजरत इमाम ए मुस्लिम पढ़ने में बहुत ही तेज और आपका हाफिजा बहुत कविता। आप पढ़ने के दौरान हदीसों को याद भी कर लेते थे। मोअर्रिखीन नहीं यही लिखा है कि आपको 300000 हदीसें ज़बानी याद थी।
इमामे मुस्लिम कब इंतकाल किए ?
इमामे मुस्लिम की इंतकाल का वाकिया बड़ा अजीबोगरीब है। एक मर्तबा क्या हुआ कि आप एक हदीस की तलाश में किताबों की वर्क गर्दानी कर रहे थे। करीबी में खजूरों का एक टोकरा रखा हुआ था। मुताला की हालत में एक-एक खजूर उसमें से आप खाते रहे और मुताला में इस कदर मुनहमिक "मशगूल" हो गए कि आप हदीस मिलने तक टोकरा में रखे हुए तमाम खुजूरे खा गए, और आपको खबर नहीं हुई। उसके बाद आपको पेट में दर्द होना शुरू हुआ इसी वजह से आप इंतकाल फरमागए।
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