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Sehri Ki Fazilat, Roza Kya Hai.

 

Roza kya aur kise kahte hain ?

मेरे अजीज दोस्तों और बहिनों !  अल्लाह से दुआ कीजीए कि हर मुसलमान भाई और बहन को इस रमजान-उल-मुबारक के तमाम रोज़े रखने की तऔफ़क आता फरमाए और इस बरकत वाले महीने की अजमत-व-बरकत के सड़के तुफ़ैल हम सब के गुनाहों को माफ फरमाए |

 

रोजा किसे कहते हैं

मेरे अज़ीज़ दोस्तों !  जब आप रोज की तारीफ कहीं से पढ़ना चाहेंगे या आप जानना चाहेंगे कि आखिर रोजा क्या है तो आप को यही मिलेगा जिसका मफहूं, मतलब मैं यहाँ पर लिख रहा हूँ | रोजा कहते हैं : सुबह सादिक़ से लेकर सूरज के डूबने तक खाने पीने और जिमा(यानि बीवी के साथ हम-बिस्तरी) करने से बचने का नाम  रोजा है |


Sehri Karna kya hai ?

सेहरी करना क्या है  ?

दोस्तों ! सबसे पहले अल्लाह का करूर हा करूर अहसान-ए-अज़ीम है रोज़े जैसी फ़ज़ीलत वाला महिना हम उम्मत-ए-मोहम्मदीया को आता फरमाई और साथ ही साथ हमें रोजा रखने की कूवत-व-ताकत आता फरमाई और रमजान के महीने में ताकत हासिल करने केलिए हमें दो अज़ीम निमतें सेहरी और इफ्तार की सूरत में आता फरमई, जिसकी फ़ज़ीलत-व-अजमत के बारे बहुत ताकीद आई है |
लेकिन हम मुसलमान भइयों में से बाज लोगों को देखा गया है कि जब हम किसी दिन सेहरी केलिए सुबह नहीं जग पाए तो दिन में यह कहते हुवे नजर आते हैं कि आज तो हुमने बी-गैर सेहरी के रोज रखा है | मेरे प्यारे आक के दीवानों !  सेहरी छूट जाने पर यह फख्र का मकाम नहीं है बल्कि हमें तो अफसोस करना चाहिए कि हुमने सेहरी की सुन्नत को छोड़ दिया और मेरे हुज़ूर मोहम्मद रसूल की प्यारी सुन्नत हुमसे छूट गई |

 

सेहरी के मुतालिक एक प्यार वकीय |

हजार साल की इबादत से बेहतर !
हज़रत-ए-सैयदूना शैख शरफ-उ-दिन अल्मारुफ बाबा बुलबुल शाह फरमाते हैं : अल्लाह रब-उल-इज्जत ने मुझे अपनी रहमत से इतनी ताकत बख्शी है कि मैं बी-गैर खाए पिए और साज-व-सामान के भी ज़िंदगी       गुजार सकता हूँ |  मगर चूंकि यह अमल हुज़ूर पुरनूर मोहम्मद  की सुन्नत नहीं है, इसलिए मैं उनसे बचता हूँ, मेरे नजदीक सुन्नत की पैरवी हजार साल की नफली इबादत से बेहतर है |

 

पहले के लोग रोजा कैसे रखते थे |

सोने के बाद सेहरी की इजाजत न थी :
जब शुरू शुरू इब्तिदाई दौर में जब रोजा फर्ज होवा था तो उस वक्त रोजा रखने वालों केलिए यह हुक्म था कि जब कोई रोजादार इफ्तार करे तो उस वक्त तक कहा सकता था जब तक कि वह जगे होते थे सोने के बाद खान पीना माना था चाहे वह थोड़ी ही देर क्यों न सोया के उठा हो तो कहना पीना सब कुछ से रुकने का हुक्म था जैसा कि अभी सेहरी के बाद हम लोगों पर कुकम हैं | मगर रब्बे-करीम का यह अहसान-ए-अज़ीम अज़ीम अपने बंदों पर फरमाते हुवे हुमलोगों को सेहरी की इजत आता फरमाई _____इसका सबब बयान फरमाते हुवे “खजाईंन-उल-इरफान में हज़रत-ए-नईम-उ-दिन मुरादा बादी नकल करते हैं  | जोकि आप को नीचे वाले भाग में पढ़ने को मिलेगा |

 

सेहरी की इजाजत की हिकायत |

हज़रत-ए-सैयदूना सरमा-बिन-कैस मेहनती शख्स थे | एक दिन रोज़े की हालत में अपनी जमीन में दिन भर काम कर के शाम में घर आए और अपनी बीवी से बोले मोहतरमा ! खाना ले आओ , और जौजा मोहतरमा खाना पकाना शुरू की और आप दिन भर काम करने की वजह से थके हुवे थे आप की आँख लग गई |  आप की जौजा मोहतरमा खाना तैयार करने के बाद आप को जगाया तो आप ने खाने से इनकार कर दिया | क्योंकि उन दिनों में (सूरज डूबने के बाद) सो जाने वाले केलिए खाना पीना मामनू यानि मना हो जाता था |  तो ऐसे ही आप खाए पिए बी-गैर दूसरे दिन भी रोजा रख लिया |   आप कमजोरी की वजह से बी-होश होगाए |  [तफ़सीर-ए-खजीन, जिल्द 01, पेज 126 ]
तो इन के हक में यह आयाते-ए-कारीमा नजिल हुवी : जिसका यहाँ पर सिर्फ अरबी का तर्जुमा लिखा जा रहा है |
कंजूल-ईमान तर्जुमा : और खाओ और पियो यहांतक कि तुम्हारे लिए जाहीर होजाये ‘सफेदी ‘ का डोरा सोयही के डोरे से पोफट कर ”

दोस्तों ! यहाँ पर जो आयात-ए-करीम का तर्जुमा जो कि आला हज़रत की तरजुमानी कंजूल-ईमान में है वही लिखा गया है लेकिन यहाँ पर गौर करने का मक़ाम यह है कि ईस आयात में रात को सियाह डोरे से और सुबह को साफेदी डोरे से तशबीह दिया गया है यानि बताया गया है | जिसल खुलासा तर्जुमा और मतलब यह है कि “तुम्हारे लिए रमजान-उल-मुबारक की रातों में खाना पीना को मुबाह करार दिया गया है यानि रमजान के महीने में जाईज करार दिया गया हैं |

[खजाईंन-उल-इरफान, पेज 62]

दोस्तों ! यहाँ पर यह सारी बातें पढ़ने के बाद और कुरानी आयात से भी यही पता चला कि फ़जर की अज्जन को रोज़े से कोई तालुक नहीं है, यानि इसका खुलासा मतलब यह समझिए कि फ़जर की अज़ान के दौरान खाने पीने का कोई जाईज होने का कोई सूरत हि नहीं है | अज़ान हो या नहीं हो आप तक अज़ान की आवाज पहुंचे या नहीं पहुंचे सुबह सादिक़ से पहले पहले आप को खाना पीना बंद कर देना होगा |  तब ही आप का रोजा शरीयत के हिसाब से सही होगा, नहीं तो आप का रोजा नहीं होगा |

इसे पढ़ना न भूलें

हम में से अक्सर लोग यह गलती करते हैं कि वो सेहरी कहते रहते हैं जब तक कि  अज़ान न होजाये, कुछ तो ऐसे होते हैं कि जब तक सुबह बिलकुल साफ न हो जाए वह कहते रहते हैं | दोस्त ! याद रखें जो इस तरह करते हैं उनका रोजा नहीं होगा, यह मैं अपनी तरफ से नहीं कह रहा हूँ अगर आपने उपेर लिखी गई बातों नहीं पढ़ है तो जरूर पढ़ें आप को खुद-ब-खूद समझ में आ जाएगा | याद रखें फ़जर की अज़ान को सेहरी से कोई तालुक नहीं है आप को चाहे कि इस्लामी रोजा-व-इफ्तार वाली कलेंडर को देख कर सही समए पर सेहरी और इफ्तारी करें तो आप का रोजा सही होगा नहीं तो नहीं |

 

सेहरी से मुतालिक 3 फरमान-ए-मुस्तफा

हदीस  01 :  अल्लाह के प्यारे नबी का इरशाद है :  रोजा रखने केलिए सेहरी खा कर कूवत हासिल करो और दिन  (दोपहर के वक़्त) आराम यानि कैलूलाह कर के रात की इबादत केलिए ताकत हासिल करो |                                                                     [ इब्न-माजा, जिल्द 2, पेज 285, हदीस 12012]

हदीस 02 :  नबी करीम मोहम्मद का इरशाद है : तीन आदमी जितना भी खा लें उनसे कोई हिसाब नहीं होगा इस शर्त के साथ कि खाना हलाल का हो
1 रोज़दार जो इफ्तार के वक़्त खाता है
2 सेहरी खाने वाला
3 मुजाहिद जो अलहल के रास्ते में सर-हद-ए-इस्लाम की हिफाजत करे |

हदीस 03 :  प्यारे का फरमान-ए-आलीशान है :  सेहरी पूरी की पूरी बरकत है पास तुम उसे न छोड़ो चाहे यही हो कि तुम पनि का एक घोंट पी लो ! बी शक अल्लाह और सेके फ़रिश्ते रहमत भेजते हैं सेहरी करने वालों पर |
[मुसनद इमाम अहमद जिल्द 4,पेज 88, हदीस 11394]

 

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