तक़लीद
Taqleed meaning in Islam.
Taqleed meaning in Hindi.
दोस्तों ! आए जरा इसका मतलब समझने की कोशिश करते हैं, तक़लीद का माना क्या होता है :
मजहब-ए-इस्लाम के चार इमामों में से किसी एक के तरेके पर इस्लाम मजहब के कानून के अहकाम का मानना यह वाजीब है | चारो इमामों के नाम यह है :
1 : हज़रत-ए-इमाम-ए-आजम अबू हनीफ़ा रदी अलहू अनहू |
2 : हज़रत-ए-इमाम-ए-मालिक रहमत-उल-अल्लाही अलैहि |
3 : हज़रत-ए-इमाम-ए-शफ़ई रहमत-उल-अल्लाही अलैहि |
4 : हज़रत-ए-इमाम-ए-हम्बल रहमत-उल-अल्लाही अलैहि |
यह वह चार इमाम हैं कि हर मुसलमान और जो भी नया मुसलमान हुआ हो उन सब केलिए इस्लाम मे के कानून को समझने और अमल करने के लिए इन चारों इमामों में से किसी की इत्तीबा ‘यानि फॉलो करना वजीब होता है’ इस को तक़लीद-ए-शखसी कहते हैं |
Sawal ; आप के पास इन इमामों के बारे में कोई सवाल हो तो आप को नीचे पढ़ने से आप को समझने में मदद होगी
तंबीह / आगाह : इन चारो इमामों ने अपनी तरफ से कोई मसअलह: लोगों को परेशान या फिर अपने आप को मनवाने के लिए नहीं बताया है, बल्कि कूरआन और हदीस का साफ साफ मतलब बयान किया है जो आम इंसान बल्कि आम आलिमों की समझ में भी नहीं आ सकता था उन बातों को इन इमामों ने हम जैसे लोगों के लिए साफ साफ अपने मासअला में बयान किया है | इसलिए इन इमामों में से किसी एक की पैरवी करना असल में कूरआन-व-हदीस की पैरवी करना है |
जवाब :
जो शख्स एक इमाम की पैरवी करता है वह दूसरे इमाम की
पैरवी नहीं कर सकता | मिसाल के तौर पर यह नहीं हो सकता कि कुछ बातों में एक इमाम
की पैरवी करे और कुछ बातों में दूसरे इमाम की पैरवी करे ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता
बल्कि तमाम मसाईल में खास एक ही इमाम की पैरवी करना वजीब है | और याद रहे यह भी
जेईज नहीं है कि कोई शफ़ई ‘यानि इमाम-ए-शफ़ई के मानने वाले’ हांफी होजाये यानी
इमाम-ए-अबू-हानिफ के मानने वले होजाये और कोई हांफी शफ़ई होजाये | बल्कि जो आज तक जिस इमाम का पैरवी कर रहा है आने वाले समय में भी उसकी पैरवी करें,
और आलम-ए-इस्लाम के तमाम उलमा का इत्तिफ़ाक़ है चारों इमामों की इलवा किसी और
इमाम-व-मुजतहीद की पैरवी जेईज नहीं है |
Iman laana in Hindi.
- इस्लाम कुबूल करने के बाद क्या करें ? इस्लाम की बुनियादी बातें
मेरे प्यारे अज़ीज़ मुसलमान भाइयों ! इस्लाम कुबूल करने के बाद, मुसलमान होने के बाद, अल्लाह और सके रसूल मोहम्म पर ईमान लाने के बाद, यानि जिसको आप आसान अल्फ़ाज़ में यह कह लिजीए ईमान और अक़ीदह सही करने के बाद सब फरजों में से बाद फर्ज नमाज़ है | कूरआन-व-हदीस में इसकी बहुत ताकीद आई है |
Islam Ke Arkaan, Buniyadi Baten.
मोमिन यानि ईमान लाने के बाद उनपर यह पाँच चीजें फर्ज होजाती है, (1) कालिमा (2) नमाज़
(3) रोजा (4) जकात (5) हज्ज दोस्तों ! इसे
इस्लाम की बुनीयदी चीज कहते हैं | इन सब चीजों को अलग पोस्ट में लिखना होगा कयोनी यहाँ
पर कॉन्टेनते जियाद हो जाएगा |
जो नमाज़ को फर्ज न माने या हल्का जाने वह काफिर है
इस्लाम से खारिज है, और जो न पढे बाद गुनहगार आखिरात ‘ दुनिया से जा ने के बाद
दोज़ख में डाला जाएगया ‘ और उस समय इस्लाम
बादशाह का हुक्म हो तो उसको कैद करने का हुक्म है |
Kis Umar meim Farz Hoti Hai ?
बच्चे को किस उम्र से नमाज़ सिखानी चाहिए ?
इस्लाम की रोशनी में हमें यह हुक्म मिलता है कि बच्चा जब सात साल का होजाये तो उसे नमाज़ पढ़ना बताया जाए और जब दस बरस का हो तो उसको मार कर नमाज़ पढ़वायी जाये |
नोट : दोस्तों ! नमाज़ से मुतालिक बातें जानने केलिए
हमारी अगली आनेवाली पोस्ट को जरूर पढ़ें |
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