Namaz-e-Janaza mein kitni Saf / Lines Ho...?
मेरे प्यारे मुसलमान भाइयों ! आज किस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप जान जाएंगे जनाजे की नमाज में कितनी सफ़ "लाइन" होनी चाहिए। और इस बात को मैंने हदीस की रोशनी में नक़ल करने की कोशिश किया है।
दोस्तों ! आप सभी से एक मोहब्बत आना गुज़ारिश है कि इस पोस्ट में लिखी गई बातों से बरकत हासिल करने के लिए एक बार दिल ही दिल में दरूद शरीफ पढ़लें।
नमाज़े जनाज़ा में कितनी सफ़।
मस्अला : दोस्तों इस मुतालिक सबसे बेहतर तरीका यही है की नमाज़-ए-जनाज़ा में तीन सफ़ "लाइन" करनी चाहिए। क्योंकि हदीस शरीफ में आया है जिस शख्स की नमाजे जनाजा तीन सफ़ों में पढ़ी जाए उसकी मग़फिरत हो जाएगी। और अगर टोटल साथ ही आदमी हो उस शख् की जनाजे में तो उनमें से एक इमाम बने और तीन पहली सफ़ में खड़े हो और दो दूसरी सफ़ में और एक तीसरी में। इस तरीके से 3 सफ़ों में 7 लोग खड़े हो जाएंगे और जनाजे की नमाज पढ़ेंगे।
इमाम का जनाजे के सामने खड़ा होना।
दोस्तों ! इस की बात की जाए कि इमाम साहब जनाजे के सामने किस जगह खड़ा हूं पैर के सामने या फिर सर के सामने या बीचो-बीच होना चाहिए ? इसके लिए किताबों में यही आया है कि मुस्ताहब तरीक़ा यह है की मैयत के सीने के सामने इमाम खड़ा हो और मय्यत से दूर ना हो।
नमाज़-ए-जनाज़ा में इमामत का हकदार।
दोस्तों नमाजे जनाजा में इमाम बनने का सबसे ज़्यादा हकदार कौन है ? इसके मुताबिक इस्लाम मजहब की किताबों में क्या आया है मैं उसे यहां पर नकल करने की कोशिश कर रहा हूं। पढ़ने के बाद इस पोस्ट के मुताबिक कोई सवाल हो तो आप जरूर कमेंट सेक्शन में बताएं।
मस्अला : नमाज़ ई जनाज़ा में इमामत का हकदार सबसे पहले बादशाह इस्लाम को है। यानी उस वक्त जो इस्लाम का बादशाह है उन्हें जनाजा पढ़ाने का ज्यादा हक हासिल हासिल है। इसके बाद उस शहर इलाका के काजी कोई मां बनने का हक है। इसके बाद तीसरे नंबर पर इमाम साहब को हासिल है। चौथे नंबर पर उस गांव मोहल्ला के इमाम को हासिल है। आखिर में मैयत के वारिस इनमें से जो अच्छी जानकारी रखते हैं और शरीयत के पावन है उन्हें इमाम बनने का हक हासिल है।
दोस्तों लेकिन याद रखें ! गांव के मस्जिद के इमाम साहब का इमामत करना यह ज्यादा बेहतर है मुस्ताहब है मैयत के वारिसीन के इमाम होने पर। और यहीं पर यह भी देखा जाएगा गांव मोहल्ला के इमाम साहब मय्यत के बारिशों से ज्यादा अफजल हो [ शरीयत के मसाईल में और पाबन्द होना भी चाहिए ] नहीं तो मैयत के वारिस इमामत करने में अफजल हैं।
मैयत के करीबी और दूरी रिश्तेदार का इमाम होना।
दोस्तों इस मस्अला के मुतालिक के मैयत के करीबी रिश्तेदार इमामत करें या फिर दूरी रिश्तेदार इमामत करें। मस्अला यह है के मैयत का सबसे नजदीक आ रिश्तेदार अगर गायब हो यानी इतनी दूरी पर रहता हो के आने में काफी वक्त लग सकता है और उसकी इंतजार में कोई बात बन सकती हैं। तो ऐसे वक्त पर जो दूर का रिश्तेदार वहां पर मौजूद होंगे उन्हीं में से कोई एक अच्छे शख्स जनाज़ा की नमाज़ पढ़ाएंगे।
अगर औरत का वली/वारिस कोई ना हो।
मस्अला : अगर औरत का कोई वारिस ना हो जो कि उसकी जनाजे की नमाज पढ़ा सके तो जोहर नमाज पढ़ाई अगर वह भी ना हो तो पड़ोसी नमाज पढ़ाए। इसी मर्द का कोई वली ना हो तो पड़ोसी नमाज पढ़ आएंगे यह दूसरे लोगों पर अफज़लियत रखते हैं।
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