मस्जिद में जनाजे की नमाज जायज है या नहीं
मस्अला : मस्जिद में नमाजे जनाजा मकरू तहरीमी है। चाहे मैयत मस्जिद के अंदर हो या बाहर या फिर सब नमाजी मस्जिद में हो या कुछ लोग मस्जिद के अंदर कुछ बाहर हो तब भी मस्जिद में नमाज़ ई जनाज़ा मकरू तहरीमी है।
मस्अला : जुम्मा के दिन अगर कोई शख्स मरा तो जुमा से पहले तजहीज़ वह तकफ़ीन हो सके तो पहले ही कर ले। इस ख्याल से रोके रखना के जुम्मे की नमाज के बाद मजमा ज्यादा होगा और नमाजे जनाजा में ज्यादा लोगों की शिरकत होगी तो इस ख्याल से जनाजे को रोके रखना मकरु है यानी इस्लाम में पसंदीदा नहीं है।
दिल से खुशामदीद आप सभी का।
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बेगैर नमाजे जनाजा मैयत पर कब तक नमाज पढ़ सकते हैं
मस्अला : मय्यत को बगैर नमाजे जनाजा पड़े दफन कर दिया यहां तक कि मिट्टी भी दे दी गई तो अब उसकी कब्र पर नमाजे जनाजा पड़ेंगे जब तक फटने का गुमान ना हो। और अगर मिट्टी ना दी गई हो तो निकाल कर यानी कब्र से बाहर निकाल कर नमाज पढ़कर फिर दफन कर देंगे।
जनाजा के साथ जाने का सवाब।
मस्अला : मैयत अगर पड़ोसी या रिश्तेदार हो यह कोई नेक शख्स हो तो उसके जनाजा के साथ जाना नफिल नमाज पढ़ने से अफजल "ज्यादा अच्छा" है।
मस्अला : जो शख्स जनाजा के साथ हो उसे बगैर नमाज़ पढ़े वापस ना होना चाहिए और नमाज के बाद मैयत के वारिसों से इजाजत लेकर वापस हो सकता है और दफन के बाद इजाजत की जरूरत नहीं।
मस्अला : जनाजा के साथ चलने वाले तमाम लोगों को दुनिया की तरह तरह की बातें करना हंसना जोर जोर से बोलना यह सब मना है।
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