नबी करीम ﷺ अपनी ज़ाहिर जिंदगी में अपने उम्मत्तियों के क़ब्र में तशरीफ ले जाते थे ..?
सवाल : क्या फरमाते हैं ओलमा-ए-किराम व मुफ्तियान-ए-एज़ाम इस मस्अला के बारे में जब कोई मोमिन बंदा का इंतिक़ाल होता है तो अल्लाह के प्यारे नबी मोहम्मद ﷺ मोमिन बंदे की क़ब्र में तशरीफ लाते हैं। और फिर इस बात पर तमाम मोमिनों का इत्तिफाक है। अब सवाल पैदा होता है कि जब हुजूर नबी करीम ﷺ ज़ाहिरी जिंदगी में थे। तो उस वक्त भी लोगों की मौत होती थी, जैसे कि कुछ सहाबा-ए-किराम नबी करीम ﷺ की हयात -ए-जिंदगी मैं हि पर्दा कर गए तो क्या हुजूर मोहम्मद ﷺ उन सहाबा-ए-किराम की क़ब्र में तशरीफ़ फरमा होए थे या नहीं ..? दही के साथ पूरे जवाब को जानने के लिए आखिर तक पढ़ें...!
जवाब : जी हां ! नबी करीम ﷺ अपनी ज़ाहिरी हयात में भी मुनकर नकीरैन के सवाल करते वक्त मोमिनों की क़ब्रों में मौजूद हुआ करते थे। जैसा कि हदीस शरीफ की रोशनी से यह बात ज़ाहिर है।
तर्जुमा : हज़रत अनस रदी अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया। जब आदमी को क़ब्र में रख दिया जाता है और उसके साथी पीठ फेर कर वापस चले जाते हैं, वह उन लोगों की जूतियां चप्पलों की आवाज़ सुनता है। उस वक्त उसके पास दो फरिश्ते आते हैं उसको बैठाते हैं और पूछते हैं उस शख्स यानी मोहम्मद ﷺ के बारे में तुम्हारा क्या अक़ीदा है ? वह कहता है मैं गवाही देता हूं कि यह अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं। फिर उससे कहा जाता है दोजक में जो जगह थी उसको देख ले। अल्लाह ने इसके बदले तुम्हें जन्नत में ठिकाना दिया।
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सैयद उल अंबिया हज़रत ए मोहम्मद मुस्तफा ﷺ ने फरमाया, तो वह अपने दोनों ठिकाने देखता है। और अगर काफिर या मुनाफ़िक़ हो तो फरिश्तों के जवाब में कहता है। मैं नहीं जानता मैं तो वही कहता था जो लोग कहते थे। फिर उससे कहा जाएगा ना तूने खुद ग़ौर किया और ना ही अच्छे लोगों की पैरवी की फिर लोहे के हथौड़े से उसके कानों के दरमियान में बड़े ज़ोर से मारा जाता है वह इतने भयानक तरीक़ा से चीख़ता है कि इंसान और जिन के इलावा उसके आसपास के तमाम मखलूक सुनती है।
( सह़ीह़ बुख़ारी, जिल्द 01, बाबुल मैयत, पेज़ 178 )
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