क़ब्र कितने प्रकार की होती है ? | मस्अला : कब्र दो तरह की होती है। (1) लहद यानी जिसे आप बग़्ली क़बर भी बोल सकते हैं। क़बर के अंदर पश्चिम तरफ एक जगह खोले जाते हैं मय्यत को रखने के लिए उसी को क़ब्र-ए-लहद कहते हैं। (2) क़ब्र-ए-संदूक यानी जो एक हौज की तरह बना कर उसके अंदर मय्यत को रखकर ऊपर से तख्ते लगाते हैं। उसी को क़ब्र-ए-संदूक कहते हैं।
कौन क़ब्र बेहतर है ?दोनों क़बरों में से सुन्नत क़ब्र क़ब्र-ए-लहद है और जब यह ना बन सके तो क़ब्र-ए-संदूक में भी कोई हर्ज नहीं है। आखिर में कब्र संदूक ही बनाकर मय्यत को उस में दफन कर देंगे। लेकिन जहां तक हो सके कोशिश करें के कब्रे लहर बनाकर मय्यत को उस में दफन करें। क्योंकि यह कब्र सुन्नत है।
ईंट की क़ब्र बनाना जायज है ? मस्अला : क़ब्र के उस हिस्सा मैं पक्की ईट लगाना मकरू है जो हिस्सा मय्यत के जिस्म के करीब होता है। मस्अला : क़ब्र के नीचे वाले हिस्से पर चटाई वगैरा बिछाना नाजायज है कि यह फ़ुज़ूल माल बर्बाद करना है। कब्र के अंदर कितने लोग उतरें ? मस्अला : कब्र के अंदर उतरने वाले दो-तीन या जितने आदमियों की ज़रूरत पड़े उतरे लेकिन याद रखें कि यह उतरने वाले शख्स नेक और अमीन हो। कि अगर क़ब्र के अंदर कोई ना मुनासिब बात देखे तो वह लोगों पर जाहिर ना करें और अच्छी बातें देखें तो चर्चा करें। मस्अला : जनाज़ा को क़ब्र से किबला की जानिब रखना मुस्ताहब है। मय्यत को किबला की तरफ से क़ब्र में उतारा जाए इस तरह नहीं कि कब्र की पाएंती (जिस तरफ पैर होता है) की तरफ से ना लाएं। सर की तरफ से कब्र में लाएं। बल्कि मुर्दा को कब्र से पश्चिम की तरफ रखें। कब्र तैयार होने के बाद मुर्दे को कब्र के अंदर किबला की तरफ से उतारा जाए।
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