क़बरों की जियारत करना क्या है
मस्अला : क़ब्र की ज़ियारत के लिए जाना अभी के दौर में एक ऐसा मसला बन गया है कि अगर कोई शख्स अपनी वालिदैन या रिश्तेदारों के क़ब्र पर जियारत के लिए जाते हैं। तो कुछ अकलमंद लोग क़बरों की ज़ीयारत के लिए जाना मना करते हैं और कहते हैं कि यह नाजायज, बिदअ़त है।
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दोस्तों ! आइए अहले सुन्नत अहले वल-जमात का इस मस्ला पर क्या अक़ीदा है। क़बरों की ज़ियारत के लिए जाना यह सुन्नत है। हर हफ्ता में 1 दिन ज़ियारत करें चाहे वह जूमा या जुमेरात या सनीचर या फिर सोमवार के दिन जियारत करने के लिए जाना चाहे जाए। मगर इन दिनों में सबसे ज़्यादा बेहतर जुम्मा का दिन सुबह सादिक का वक्त है।
दोस्तों ! इसे भी जरूर याद रखें ! अल्लाह के वलियों के मज़ारात पर सफर करके जाना यह जायज है। औलिया अल्लाह अपने जियारत करने वालों को नफ़ा पहुंचाते हैं। और अगर मजार पर शरीयत के खिलाफ कोई बात देखें। जैसे औरतों का सामना करना, बाजा बजाना वगैरह यानी जो बातें शरीयत में मना है, उसकी वजह से जियारत ना छोड़ी जाए कि ऐसे वक्त पर ऐसी बातों से नेक काम छोड़ना नहीं
चाहिए बल्कि उन कामों को बुरा जाने और हो सके तो बुरी बातों को दूर करें।
मस्अला : सलामती इसी में है कि औरतों को जियारत ए कुबूर से रोका जाए। यानी इस्लाम का यही नजरिया है औरतों को कब्रों की जियारत से रोका जाए इसी में सलामती है। बात सलामती की है अगर कोई औरत शरीयत के दायरे में जियारत के लिए गई तो जा सकती हैं। लेकिन हमें बचना चाहिए इस से माहौल खराब हो सकता है। और एक औरत नाक़िस -उल अक़ल यानी आधे अक़ल की मालिक होती हैं।
क़ब्र को मज़ार क्यों कहते हैं।
मेरे अजीज दोस्तों ! इस बात पर किसी को एतराज नहीं है कि क़ब्र को क़ब्र क्यों कहते हैं ? लेकिन इस दौर के बड़े-बड़े मूफ़क्किर [ जोकि दुश्मनों के साजिशों में आकर अपने अपने ईमान को बर्बाद कर डाला है ] उन लोगों का इस पर सवाल है कि क़ब्र को मजार क्यों कहते हैं।
जवाब : दोस्तों ! अगर इसका जवाब आसान अल्फाज में दिया जाए तो हम लोग यही कहते हैं कि आम लोगों की कब्र को कब्र कहते हैं। और जो अल्लाह के नेक महबूब बंदे इस दुनिया से गुज़रते "इंतकाल" हैं तो उसे हम लोग अदब के दर्जे में मज़ार कहते हैं।
और लफ़्ज़-ए-मजार पर बात करें तो यह एक अरबी लफ्ज़ है जिससे किसी चीज को देखने का मतलब निकलता है। और यह मोहब्बत का तकाजा होता है जो शख्स जिनसे मोहब्बत चाहत का ताल्लुक रखते हैं वह उनके लिए अच्छे से अच्छे अल्फाज इस्तेमाल करते हैं। और वह यही चाहते हैं कि हमेशा उनको मैं देखता रहूं। तो अब आप बताइए इसमें क्या हर्ज है ?
नोट : मेरे अज़ीज़ इस्लामी भाइयों साथियों ! अभी के दौर में ईमान को बचाना बहुत मुश्किल है क्योंकि अभी के हालात पर जो असर है यह क़यामत की निशानियां से खाली नहीं है। तो हर एक सच्चे मुसलमान को ईमान को बचाने के लिए अच्छी से अच्छी जगह पनाह लेने की ज़रूरत है।
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