औरत को मां समझकर मुसाफा करना कैसा है ?
सवाल : क्या फ़रमाते हैं ओलमा-ए-किराम व मुफ्तियान-ए-एज़ाम इस मस्अला के बारे में कि औरत को मांँ समझ कर उन से मुसाफा करना कैसा है ?
जवाब : किसी अजनबी औरत को मां समझ कर मुसाफा "हाथ मिलाना" करना ऐसा ही हुआ जैसे शराब को पानी समझकर पीना। हां अगर मुहारिम में से है तो फिर मुसाफा करना जायज है। क्योंकि मुहारिम के जिन बदन के हिस्से देखना जायज है उसे छूना भी जायज है जबकि दोनों में से किसी को शहवत का अंदेशा ना हो।
बहारे शरीयत में है जो औरत उसके मुहारिम में हो उसके सिर, सीना, पिंडली, बाजू, कलाई, गर्दन, कदम की तरफ नजर कर सकता है। जब के दोनों में से किसी को शहवत का अंदेशा ना हो। मुहारिम के पेट, पीठ और रान की तरफ नजर करना नाजायज है।
इसी तरह करवट और घुटने की तरफ नजर करना भी नाजायज है। कान, गर्दन, शाना / बाजू, चेहरा की तरफ नजर करना जायज है। मुहारिम से मुराद वह औरतें हैं जिन से हमेशा के लिए निकाह हराम है। मुहारिम के जिन आजा "हिस्सा" की तरफ नजर कर सकता है उनको छू भी सकता है, जब के दोनों में से किसी को शहवत का अंदेशा ना हो।
[ बहारे शरीयत, जिल्द : 3 हाशिया : 16 पेज़ : 666 से 665 तक ]
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