कब कफ़न का कपड़ा दूसरे से मांगना जायज है ?
मस्अला : जब कफ़न-ए-ज़रूरत के मुताबिक कपड़े हो तो कफ़न-ए-सुन्नत के लिए दूसरों से (कपड़ा) मांगना जायज़ नहीं है। इस्लाम के अंदर बग़ैर ज़रूरत के किसी दूसरे से सवाल करना नाजायज़ है और यहां ज़रूरत नहीं है। अलबत्ता अगर कफ़न-ए-ज़रूरत के लिए भी कपड़े इंतजाम ना हो तो जरूरत भर के लिए यानी जितने कपड़ों की जरूरत है उतने का सवाल कर सकते हैं ज़्यादा के लिए नहीं। अगर कोई मुसलमान शख्स बगैर मांगे कोई मुसलमान शख्स खुद ही कफन का कपड़ा पूरा कर दें तो इंशाल्लाह वह पूरा सवा पाएंगे। (फतवा-ए-रिज़विया)
कफ़न का कपड़ा कैसा होना चाहिए ?
मस्अला : कफ़न का कपड़ा अच्छा होना चाहिए यानी मर्द ईद और जुमा के लिए जैसा कपड़ा पहनता था और औरत जैसे कपड़े पहन कर मां के घर जाते थे उस कीमत का होना चाहिए।
हदीस शरीफ में आया है के मुर्दों को अच्छा कफन दो वह कब्र में जाने के बाद आपस में उन लोगों की एक दूसरे से मुलाकात होती है तो वह लोग अच्छे कफन से फक्र करते हैं यानी खुश होते हैं सफेद कफन बेहतर है।
अल्लाह के प्यारे रसूल मोहम्मद ﷺ ने फरमाया है अपने मुर्दे को सफेद कपड़ो में कफ़नाओ।
मस्अला : कुसुम या जाफरान का रंगा हुआ या रेशम का कफ़न मर्द के लिए मना है और औरत के लिए जायज़ है। रेशम का भी कपड़ा कफ़न दे सकते हैं सिर्फ औरतों को। यानी खुलासा यह समझना चाहिए ! कि जो कपड़ा ज़िंदगी में पहन सकता है उसका कफ़न दिया जा सकता है और जिसका पहनना जिंदगी में नाजायज है उसका कफन भी देना नाजायज हैं।
पुराने कपड़े का कफ़न देना।
मेरे अज़ीज़ दोस्तों ! बहुत सारे लोग ऐसे सवालात में फंसे रहते हैं कि क्या पुराना कपड़े का भी कफ़न दिया जा सकता है ? इस्लाम यह इजाज़त देता है कि अगर किसी शख्स के पास कफ़न के लिए पैसे ना हो या कहीं ऐसी जगह पर इंतकाल हुआ कि जहां पर दूर-दूर तक कुछ नज़र नहीं आती हो और ना ही उस जगह पर कोई सवारी चल रही हो तो ऐसी वीरान सुनसान जगह पर वह शख्स पुराने कपड़े ही में दफन कर सकते हैं। यानी कफ़न पुराने कपड़े का भी दे सकते हैं।
0 Comments
मेरे प्यारे दोस्तों ! यहां पर आप कोई ग़लत बात कमेंट ना करें। सिर्फ पोस्ट से संबंध कमेंट करें।