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कफ़न का बयान कितने दर्जे के होते हैं।

 कफ़न का बयान कितने दर्जे के होते हैं।



मेरे अज़ीज़ प्यारे इस्लामी भाइयों ! आप लोग टाइटल ही देखकर समझ गए होंगे कि आज की पोस्ट में क्या जानकारियां प्राप्त करने वाले हैं। यह बात अक्सर मुसलमानों के दिमाग में आती होगी कि मुसलमान जब भी इस दुनिया से इंतकाल करते हैं। उसको इस दुनिया से रुखसत करते समय कपड़ा दिया जाता है। 

मय्यत को कपड़ा देना जिसको हम और आप लोग कफन के नाम से जानते हैं। मर्द और औरत के लिए कफन एक ही बराबर है या फिर अलग-अलग, अगर अलग अलग है तो फिर क्या है ? 


मय्यत को कफन देना क्या है ? 

मेरे प्यारे दोस्तों ! जब आप इस सवाल से संबंध इस्लाम की बड़ी-बड़ी किताबों में या फिर सोशल मीडिया गूगल जैसी प्लेटफार्म मैं अगर सर्च करें, इस सवाल का जवाब तलाश करें तो आपको यही मिलेगा। 

मय्यत को कफन देना फ़र्ज़े किफ़ाया है। इस्लाम की जानिब से यह मुसलमानों पर हुकुम है कि जब भी कोई मुसलमान इंतकल करे तो उसको कफन देना फ़र्ज़े किफ़ाया है। यानी जिन लोगों को भी पता चला कि फला गांव , कस्बा, या शहर में कोई मुसलमान इंतकाल कर गया है। यह खबर जिन लोगों तक पहुंची है उनमें से अगर कोई शख्स भी उस मुर्दे को कफन दे दिया तो सब उस हुकुम से आज़ाद हो गया। नहीं तो सब लोग गुनहगार हो जाते हैं। इसी को फ़र्ज़ किफ़ाया कहते हैं। 


कफ़न के कितने दर्जे होते हैं ? 

कफ़न के तीन दर्जे हैं। (१) ज़रूरत ।। (२) किफ़ायत ।। (३) सुन्नत ।। 

(1) मर्द के लिए कफ़न-ए-सुन्नत तीन कपड़े होते हैं। (१) लिफ़ाफ़ा (२) इज़ार (३) कमीज़ ।।

(2) औरत के लिए कफ़न-ए-सुन्नत पांच कपड़े होते हैं। (१) लिफ़ाफ़ (२) इज़ार (३) कमीज़ (४) ओढ़नी (५) सीना, छाती बंद ।।


कफ़न-ए-किफ़ायत : मर्द के लिए सिर्फ दो कपड़े हैं। लिफ़ाफा और इज़ार।। औरत के लिए तीन कपड़े हैं। लिफ़ाफ़ा, इज़ार और ओढ़नी या लिफ़ाफ़ा कमीज़ और ओढ़नी। इसे कफ़न-ए-किफ़ायत कहते हैं।


कफ़न-ए-ज़रूरत : मर्द और औरत दोनों के लिए जो कपड़ा मिल जाए कम से कम इतना कपड़ा होना चाहिए कि सारा बदन ढक जाए। इसे कफ़न-ए-ज़रूरत कहते हैं। 

मस्अला : लिफ़ाफ़ा दूसरी भाषा में चादर को कहते हैं। चादर ऐसी होनी चाहिए के मैयत के हाइट से इतनी ज्यादा हो के दोनों तरफ बांध सकें।।  इज़ार को दूसरी भाषा में तहबंद या लूंगी कहते हैं। जिसकी साइज चोटी से कदम तक हो यानी लिफाफा से इतना छोटा हो जो बांधने के लिए लिफ़ाफा में ज़्यादा किया गया था।।  कमीज़ जिसको हर आदमी जानते हैं इसे कफ़नी भी कहते हैं। जोके गर्दन से घुटनों के नीचे तक की होनी चाहिए और कफ़नी यानी कमीज़ आगे पीछे दोनों तरफ बराबर होनी चाहिए। जाहिलों की तरह ना करें क्योंकि जाहिलओं में यह रिवाज है कि पीछे कम रखते हैं आगे बढ़ा देते हैं जो कि ग़लत है। 

मर्द और औरत की कंफ़नी में क्या फर्क है ? 

मर्द औरत की कफ़नी में फ़र्क इतना है कि मर्द की कंफ़नी मुंडे पर चीरें और औरत के लिए सीना की तरफ ओढनी तीन हाथ की होनी चाहिए यानी डेड़ ग़ज़ की। सीना बंद पिस्तान से लेकर नाफ़ तक हो और बेहतर यह है कि रान तक हो।

मस्अला : बगैर ज़रूरत क़फ़न किफ़ायत से कम करना ना जाए और मकरू हैं।

 

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