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कफ़न किसके माल से हो और किस पर वाजिब होता है

 कफ़न किसके माल से होना चाहिए और किस पर वाजिब होता है ?




मस्अला : मैयत ने अगर कुछ माल छड़ा तो कफन उसी के माल से होना चाहिए। यानी कोई शख्स दुनिया में दौलत-व-सल्तनत यहां तक कि कुछ पैसे भी छोड़कर इंतकाल कर गया इस दुनिया से मर गया। तो कफन का कपड़ा सबसे पहले उसी के माल से होना चाहिए। अगरचे उसके वारिस यानी बेटा बेटी कोई भी उसके जानने पहचानने वाले देना चाहे तो इससे पहले उन पैसों से कफन का कपड़ा खरीदा जाए जो पैसे मय्यत छोड़ कर गया है। 

मस्अला : दैन "क़र्ज़" वसीयत और मीरास इन सब पर कफन मुक़दम है। यानी मैयत के माल से पहले कफन दिया जाएगा। फिर अगर कुछ बाकी बचे तो उससे कर्जदारों को क़र्ज़ अदा किया जाएगा। उसके तिहाई हिस्सा वसीयत पूरी की जाएगी फिर बचे हुए बांके पैसों को वारिसों में तक्सीम किया जाएगा। 

यानी मय्यत के छोड़े हुए पैसों, दौलत-व-सलतनत को चार हिस्सों में बांटा जाएगा। पहला हिस्सा से कफ़न दिया जाएगा। दूसरा हिस्सा से कर्ज अदा किया जाएगा। और तीसरा हिस्सा से वसीयत पूरी की जाएगी जोके मय्यत ने दुनिया में रहते हुए आपको वसीयत की थी। चौथा हिस्सा को उनके वारिस यानी जो भी बेटा बेटियां है सभी को बांट दिया जाएगा। 


मस्अला : मैयत ने माल ना छोड़ा तो कफन उसके जिम्मा है जिसके जिम्मे ज़िंदगी में नफ़्क़ा [ खाना पीना रोटी कपड़े का खर्च तमाम ज़रूरियात ] था। और अगर कोई ऐसा शख्स दुनिया में था ही नहीं जिस पर नफ़्क़ा वाजिब होता है या है। मगर नादार है यानी वह नहीं दे सकता तो बैतूल माल से कफन दिया जाएगा।  और अगर बैतूलमाल भी वहां ना हो तो वहां के मुसलमानों पर फर्ज है कि वह उस मय्यत को कफन दे कर तदफ़ीन करें। जितने लोगों को मालूम था और उन्होंने कफन ना दिया तो सब गुनाहगार होंगे। अगर उन लोगों के पास भी नहीं है तो एक कपड़े के बराबर और लोगों से सवाल करें। 

मेरे अज़ीज़ प्यारे दोस्तों ! आगे आने वाला मसला बहुत ही दिलचस्प और याद रखने वाला है। जोके अक्सर लोगों को याद नहीं रहता। 

मस्अला : औरत ने अगरचे माल छोड़कर इस दुनिया से इंतकाल की हो, लेकिन उसका कफ़न शोहर ही के जिम्मे है। इसके लिए कुछ शर्ते हैं कि मौत के वक्त वह औरत कोई ऐसी बात ना कही हो जिससे कि औरत का नफ़्क़ा [ खाना पीना रोटी कपड़े का खर्च तमाम ज़रूरियात ]  शोहर से साक़ित "ख़त्म" हो जाता है। और अगर शोहर मरा और उसकी औरत मालदार है तब भी औरत पर उसके शौहर का कफ़न वाजिब नहीं होता है। 


मस्अला : यह जो कहा गया कि फलां पर कफन वाजिब है इससे मुराद कफ़न-ए-शरई है। इसी तरह तजहीज़ का सब बाक़ी सामान जैसे खुशबू, नहलाना, ले जाने वालों की उजरात, दफन करने वालों की उजरत सब शरई मिकदार मुराद है। इसके अलावा और बातें जो मैयत के माल से किया गया अगर वारिस बालिक हो और सब वारिसों ने इजाज़त भी दे दी हो तो जायज है वरना खर्च करने वाले के जिम्मे है। 

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