गुनाहों का ख्याल। गुनाहों का ख़्याल आना खुदा की बड़ी तौफीक़ है।
रिवायत एक आक़िबत अंदेश आदमी को एक मर्तबा अपने गुनाहों का ख्याल आया। वह अपनी उम्र का हिसाब करने लगा। हिसाब जो किया तो उसकी उम्र 60 साल निकली। फिर वह शख़्स उन्हें 60 सालों के दिनों को गिनने लगा। तो 60 साल के 21,500 दिन निकले। जब वह यह दिनों को देखा तो बेहोश होकर गिर पड़ा। और जब होश आया। तो कहने लगा अफसोस ! मैं हलाक हो गया। 21,500 साडे इकीस हज़ार दिनों में अगर हर एक दिन 1 गुना गिनू तो हमारे 21,500 गुना बनते हैं। और हाल यह है कि मैंने एक दिन कई कई गुनाह किए हैं। यह कहकर वह फिर से गिर पड़ा। और उनकी रूह कब्ज हुई वह इंतकाल हो गया।
सबक़ दोस्तों हर शख़्स को अपने आमाल का मुहासिबा करना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि उनकी जिंदगी के हर पल मोड़ किस तरह गुजर रही है। अगर सोचा जाए कि सारी उम्र के हर एक दिन एक गुनाह किया है तो 1 साल में कितने गुना होंगे। और उनकी उम्र के तमाम दिनों को इकट्ठे किए जाए और गुनाह हो जमा किए जाए तो बताएं वह शख्स गुनगुनाहों के साथ अल्लाह की बारगाह में कैसे मुंह दिखाएगा।
कल क़यामत के दिन किस क़दर मुश्किल का सामना करना होगा। पस हर शख़्स को डरना चाहिए और गुनाहों से बचना चाहिए।
आबादी किस जगह को कहते हैं ?
रिवायत एक घोड़सवार जाते हुए एक शख़्स से पूछा। भाई ! यहां से आबादी कितनी दूर है। उस शख़्स ने जवाब दिया। आप अपनी दाहिनी तरफ देखिए। वह देखिए आपके सामने वह आबादी ही नज़र आ रही है। घोड़े सवार ने उस शख्स के जवाब के मुताबिक उस तरफ देखा तो उसे सिर्फ एक लंबी चौड़ी कब्रिस्तान नज़र आया। घोड़े सवार ने दिल ही दिल में सोचने लगा। कि यह शख्स या तो दीवाना है या फिर मर्द ए कामिल है। फिर उसने पूछा। भाई ! मैंने आबादी के बारे में पूछा है। और तुम क़ब्रिस्तान बता रहे हो यह क्या बात है ?
तो वह शख ने बोला यह इसलिए आबादी है कि यहां पर मैंने दूर-दूर से बड़े-बड़े लोगों को सिर्फ आते हुए देखा है। यहां आने के बाद फिर मैं किसी को यहां से जाते हैं ना देखा है। और आबादी कहते ही उस मकान को जहां पर लोग दूर-दूर से आए। और फिर वहां से वीरान को ना जाए। तो मेरी नजर में यही आबादी वाली जगह है।
सबक़ मेरे अज़ीज़ दोस्तों ! ऐसी बातों से हमें अपनी आखिरत को सवारने चाहिए। और इस बात पर तो हर एक का यक़न है कि हर एक को ज़रूर मारना है। और अपने शानदार महल मकान और शहर को छोड़कर क़ब्र में जाना है।
दोस्तों याद रहे ! आज हम जिसे आबादी समझ रहे हैं। वह दरअसल बर्बादी का सामान है। असल आबादी तो कब्रिस्तान में है। जहां धीरे-धरे सब लोग जमा हो रहे हैं। कभी आपके दादा तो कभी आपके नाना और कभी खुद आप भी। यानी यह सिलसिला कयामत तक जारी रहेगा हर शख्स को वहां आकर जमा होना है। जो कि असल में आबादी की जगह है और आज लोग उसे वीरान समझते हैं।
अल्लाह से दुआ रखें कि हमें सही सोच समझ और ज़िंदगी की हर मोड़ को इस्लाम के क़ानून के हिसाब से गुज़ारने की तौफीक अता फरमाएं।
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