अस्सलामू अलैकुम दोस्तों..!
आज की इस पोस्ट के अंदर आप इस्लाम का एक ऐसा दिलचस्प वाकया पढ़ने वाले हैं जिसके बाद आपको पता चल जाएगा क्या नबी को शाफि [ यानी शिफा करना ] यह मानना सही है या गलत।
दोस्तों पढ़ने से पहले एक बार दुरूद शरीफ पढ़ लें
इब्ने तलक फ़रमाते हैं कि मैंने अल्लाह के नबी के हुक्म के मुताबिक आप ﷺ के बचे हुए पानी से अपने सर को धोया। और फिर हुजूर ﷺ पर ईमान लाया और कलिमा पढ़ कर मुसलमान हो गया। तब अल्लाह के प्यारे हबीब ﷺ से यह अर्ज की अल्लाह के प्यारे रसूल ﷺ..! मुझे आप अपनी कमीज़े मुबारक का कोई टुकड़ा इनायत फरमाइए दीजिए। चुनांचे हुजूर नबी करीम ﷺ ने अपनी कमीजे मुबारक का एक टुकड़ा मुझे अता फरमा दिया।
अब वह टुकड़ा इब्ने तलक यमामी रदि अल्लाहू अन्हू के पास रहा। जब भी कोई बीमार पड़ता या बीमार शख्स उनके पास आता तो वह उस टुकड़े के वसीले से शिफा हासिल करने के लिए पानी में डाल देते और फिर उस पानी को उस मरीज को पिला देते थे। उस मरीज बीमार को शिफा हसीन हो जाता।
[ हुज्जतुलल्लाह अल-लआलमीन पेज : ४२६, 426 ]
सबक़ नोट : मेरे अजीज इस्लामी भाइयों..! इस वाक्य से हमें पता चलता है कि अल्लाह के रसूल के सहाबिए कराम को हुजूर ﷺ से बहुत मोहब्बत थी। वह हर उन चीजों से मोहब्बत करते थे जिन को अल्लाह के रसूल से निस्बत होती थी। और रूस और सल्लम के मुबारक बदन से लगे हुए कपड़े को दाफ ए बला यानी बीमारियों से शिफा की दवा जानते थे।
मेरे प्यारे दोस्तों जरा सोचिए..! उन लोगों के बारे में जो लोग खुद हुजूर नबी करीम ﷺ को दाफ़ ए बला मानने को शिर्क मानते और बताते हैं। तो हमें समझना चाहिए कि ऐसे लोग सहाबा-ए-कराम के मसलक से किस कदर दूर है।
खुदा हाफ़िज़
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