मक़ामे इब्राहिम अलैहिस्सलाम क्या है

मेरे दोस्तों ! मक़ामे इब्राहिम वह जगह है जिस जगह के बारे में अल्लाह ताला इरशाद फ़र्माता है। दुनियां के हर कोने से हज करने के लिए आने वालों ! जब तुम ख़ुदा का मुकद्दस घर ख़ाना-ए-काबा शरीफ के पास पहुंचो तो पहले साथ चक्कर बैतुल्लाह का तवाफ करो फिर उसके बाद वहाँ से कुछ क़दम दूर चल कर मकामे इब्राहिम पर 2 रकात नमाज़ पढ़ो...!



 

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मेरे प्यारे अज़ीज़ दोस्तों ! मकाम-ए-इब्राहिम अलैहिस्सलाम क्या चीज़ है ?   दोस्तों मकामे अब्राहिम एक पत्थर है एक ऐसा मुकद्दस पत्थर है कि जब हज़रते इब्राहिम और उनके बेटे हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम बैतुल्लाह की दीवारों को तामीर कर रहे थे। तो हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम उसी पत्थर पर खड़े होकर बैतुल्लाह की दीवारों को बनाया था। 

आइए ज़रा इस्लाम धर्म की उस किताब के अंदर तलाश करते हैं। क्या इस्लाम की आखिरी किताब कुरान शरीफ में है ?

मेरे दोस्तों अल्लाह ताला की आख़िरी किताब कुरआन शरीफ में है अल्लाह फरमाता है कि जब हज़रते इब्राहिम और इस्माइल अलैहिस्सलाम बैतुल्लाह की दीवारों को तामीर कर रहे थे तो यह दुआ मांगते थे कि ऐ परवरदिगारे आलम !   तू हमारी इस ख़िदमत,काम को क़ुबूल फरमा ले बेशक तू हमारी दुआओं का सुनने वाला है और हमारी नियत ओं का जानने वाला है।

(  सूर-ए-बक़रा )




हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम नीचे से पत्थर और गारा उठा कर देते थे और उनके वालिद, पापा हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम उस मुकद्दस पत्थर पर खड़े होकर दीवारों को तामीर फरमा रहे थे। हज़रते इब्राहिम इतनी देर तक उस पत्थर पर खड़े रहे कि उस पत्थर पर आपके दोनों कदमों का निशान पड़ गया, जो आज तक क़ायम, बाक़ी है। यह हज़रते इब्राहिम अलैहिस्सलाम का मोजज़ा है कि पत्थर मूंम की तरह नरम हो गया और आपका दोनों पांव मुबारक का निशान उस पत्थर पर आ गया। इसी वजह से यह पत्थर मकामे इब्राहिम  कहलाने लगा। 

नोट :  दोस्तों इसमें अगर कोई writing mistake हो तो आप ज़रूर मुझे कमेंट करके बताएं। ज़्यादा से ज़्यादा से shareकरें...!