हवा में इबादत 3 बुजुर्गों का वाकिया।
हज़रत ए ख़लील रदी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं। हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम एक दिन एक आबिद के पास से गुजरे जो हवा में इबादत कर रहा था। हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने उनसे पूछा। तुम अल्लाह की बारगाह में ऐसे मुक़ाम पर कैसे फाइज़ हुए।
उसने अर्ज़ किया : मैं अल्लाह की बारगाह में इस मामूली वजह से ऐसे मुक़ाम पर फाइज़ हुआ हूं कि मैंने अपने आप को दुनिया से अलग कर लिया "यानी फजूल बातों से अपने आप को परहेज़ किया" , और जिसका मुझे हुक्म दिया गया मैंने उसमें ग़ैर-व-फिकर किया और उस पर अमल /चलने लगा। और जिन बातों से मुझे रोका गया उस पर ग़ौर-व-फिक्र करने के बाद मैं रुक गया।
इसलिए अब यह हालत है कि जब मैं उससे इलतिजा करता हूं वह आता करता है जब दुआ मांगता हूं वह कुबूल फरमाता है। मैंने अल्लाह से यह सवाल किया कि मुझे हवा में ठहरा दे, तो उसने मुझे हवा में ठहरा दिया।
दूसरा वाकिया :
हज़रत वहब रदी अल्लाहू अन्हु फरमाते हैं कि बनी इसराइल में दो शख्स बहुत इबादत गुज़ार थें। यहां तक कि वह पानी पर चला करते थे। एक दिन वह पानी पर चल रहे थे कि हवा में उड़ने वाले शख्स से मुलाकात हो गई। उन्होंने ( पानी पर चलने वाले ) उनसे पूछा तुम किस अमल से इस मर्तबा को पहुंचे।
उसने फरमाया : एक मामूलीसा अमल करके, यानी मैंने अपने आपको शहवात से रोका, अपनी ज़ुबान को फ़ुज़ूल बातों से रोका और जिसकी मुझे अल्लाह ताला ने दावत दी उसकी तरफ मैं आगे बढ़ा और शौक़ से अमल किया। खामोशी को लाजिम पकड़ लिया। पस अगर मैं अल्लाह के सामने ( किसी काम करने का ) क़सम खा बैठा हूं तो वह मुझे ( झूठा ना होने दें ) यानी मेरी क़सम को पूरा कर दें और अगर सवाल करूं तो आता कर दें।
ज़िंदगी में जान लाने वाली बातें।
हज़रत सुलेमान बिन दाऊद अलैहिस्सलाम ने फरमाया : जो शख्स अपनी ख्वाहिशात पर क़ाबू पा लेता है, वह उस शख्स से ज़्यादा ताक़तवर है जो किसी शहर को अकेले फतह करें।
हवा में एक और बुज़ुर्ग का वाक़या ।
हज़रत ए हुज़ैफ़ा रहमतुल्लाही अलैह फरमाते हैं कि मैं एक कश्ती पर सफर कर रहा था वह कश्ती टूट गई, मैं और एक औरत कश्ती के एक तख़्ता पर बाक़ी रह गए। हमने 7 दिन उसी हालत में गुजार दिए। औरत ने कहा : कि मुझे प्यास लगी है फिर उसने अल्लाह से पानी तलब किया ( शायद वह समंदर कड़वा होगा जिसमें यह गिरे हुए थे ) तो ( अल्लाह ताला ने हम पर ) एक ज़ंजीर को उतारा जिससे पानी का एक कोजा ( पानीपत थैला ) लटका हुआ था चुनांचे उस औरत ने पानी पी लिया। मैंने उस ज़ंजीर को देखने के लिए नज़रों ऊपर किया, तो एक आदमी को हवा में चौकड़ी मारे हुए बैठा देखा।
मैंने उनसे पूछा : तुम कौन हो ?
उसने कहा : मैं एक इंसान हूं।
मैंने कहा : इस दर्जे पर कैसे पहुंचा।
उसने कहा : मैंने अपनी मर्जी को अल्लाह की मर्जी ताबे ( फरमाबरदार ) में कर दिया। उसी ने मुझे यहां पर बैठाया है जैसा कि तुम देख रहे हो।
ख्वाहिश-व-अमल का मिलाप (एक साथ मिलना)
हज़रत अबू दरदा फरमाते हैं : जब आदमी सुबह को उठता है। तो उसकी ख्वाहिश और अमल का मिलाप होता है। अगर अमल ख्वाहिश के ताबे हो जाए, तो वह दिन उसका खराब हो गया, और अगर ख्वाहिश अमल ताबे हो जाए तो वह उसका दिन बेहतर हो गया।
इंसान कब कुफ्र काम कर बैठता है ?
हुज्जाज बिन युसूफ जो केक जालिम गवर्नर था। उसने कहा कि कुफ्र जार कामों में होता है।
[01] गुस्सा में [02] शहवत में [03] शौक में [04] ख़ौफ़ में |
फिर हुज्जाज ने कहा : कि इनमें से दो तो मैंने खुद देखी हैं। एक आदमी ने गुस्सा में मां को कत्ल कर डाला। दूसरा इश्क में मुब्तला होकर ईसाई हो गया।
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