जनाज़ा लेकर चलने का बयान और तरीक़।
प्यारे अज़ीज़ दोस्तों ! आज की इस पोस्ट के अंदर हम जाने वाले हैं। जनाजा लेकर चलने का तरीका क्या है ? क्या जनाज़ा को कांधा देना सुन्नत, फ़र्ज़, वाजिब या फिर मुस्ताहब है। इसके बारे में भी बात करेंगे।
जनाज़ा को कंधा देना क्या है ?
मस्अला : जनाजे को कंधा देना इबादत है हर शख्स को चाहिए कि इबादत में हरगिस कोताही ना करें। और हमें हरीश से यह भी मिलता है के जनाजे को कंधा देना सुन्नत भी है। क्योंकि हमारे आपके प्यारे आका रसूल मोहम्मद ﷺ ने खुद साद-बिन-माज रदि अल्लाहू अन्हू का जनाज़ा उठाया। इससे हमें पता चलता है कि हर मुसलमान भाई के जनाज़े को कंधा देना सुन्नत है।
जनाज़े को किस तरह कंधा देना सुन्नत है ?
मस्अला : सुन्नत तरीका एक के बाद दूसरा शख्स चारों तरफ कंधा दें और हर एक बार 10 10 कदम चले। यानी सुन्नत यह है कि पहले दाहिना सर की तरफ से कंधा दें फिर दाहिने पैर की तरफ से कंधा दें फिर बाय सर की तरफ से फिर बाएं पैर की तरफ से कंधा दें और हर एक तरफ 10 10 कदम चले तो पूरे 40 कदम होते हैं।
हदीस शरीफ में आया है कि जो शख्स 40 क़दम जनाजा लेकर चले उसके 40 कबीरा "बड़े गुनाह" गुनाह मिटा दिए जाएंगे और जो जनाजा के चारों पायो को कंधा दें अल्लाह ताला उसकी मग़फ़िरत फरमा देगा।
दोस्तों आगे आने वाले मस्अला में जनाजा के साथ चलने के आदाब के बारे में बताया गया है आप उसे जरूर पढ़ें...।
मस्अला : जनाजा को ले चलने में चारपाई को हाथ से पकड़ कर मुंडे shoulder पर रखें असबाब "यानी दुनियावी सामान की तरह" की तरह गर्दन या पीठ पर लाद ना मकरू है। जानवर पर भी जनाजा लाद कर कब्रिस्तान, जनाज़ा गाह ले जाना मकरूह है।
बच्चे की जनाजा को लेकर चलना
मस्अला : छोटे बच्चे को अगर एक आदमी हाथ पर उठाकर कब्रिस्तान ले जाए तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। लोगों को चाहिए कि हाथों हाथ एक के बाद दूसरा जनाजे को लेता रहे। यहां तक कि इसी तरह कब्रिस्तान पहुंच जाए।
दोस्तों यह बात भी याद रखें कि जनाजे को तेजी से ले जाने में कोई हर्ज की बात नहीं है मगर इस तरह ले जाना चाहिए की मैयत को झटका ना लगे और ना ही तकलीफ़ पहुंच पाय।
जनाजे के साथ चलने का आदाब
जनाजे के साथ चलने वाले हर मुस्लिम भाइयों को चाहिए कि अफजल तरीका यह है के जनाजे के पीछे पीछे चले दाएं बाएं ना चले और अगर कोई आगे चले तो उसे चाहिए कि इतनी दूर रहे कि साथियों में नागिन आ जाए। यानी दूर से देखने वाले सबसे को लगेंग के वह उन लोगों के साथ नहीं है। और अगर सब के सब लोग जनाजे से आगे हो तो मकरू है ऐसा नहीं करना चाहिए शरीयत में नापसंदिगई है।
जनाजे के साथ पैदल चलना सवारी पर चलने से अफ़ज़ल है। और सवारी पर हो तो आगे चलना मकरूह और आगे हो तो जनाजा से इतना दूर हो कि उसमें नागिन आ जाए।
जनाजे को कब्रिस्तान ले जाते समय सिरहाना आगे होना चाहिए। यह बात जरूर याद रखें कि जब कभी भी जनाजे के साथ चलें तो आग ले जाना कतई तौर पर मना है।
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