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ग़ैर सैयद को सैयद कहना कैसा है ?

 ग़ैर सैयद को सैयद कहना कैसा है ? 




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सवाल : क्या फ़रमाते हैं ओलमा-ए-किरामराम व मुफ्तियान-ए-एज़ाम इस मस्अला के बारे में कि ग़ैर सैयद को या सैयदी कहना कैसा है ? जवाब इनायत फ़रमाऐं।

  
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जवाब : लोग़त वालों के नज़दीक सैयद का माना, पेशवा, सरदार, बुजुर्ग और लग़वी / Dictionary माना के एतिबार से किसी ग़ैर सैयद को सैयदी कहना दुरुस्त है। क्योंकि आला हज़रत हमारे पेशवा रहनुमा हैं। ना कि हुज़ूर मोहम्मद ﷺ की तरफ कोई निस्बत करके कहता है, अगर कोई कहता भी हो तो ग़लत कहते हैं। हदीस शरीफ में मुमानियत आई है। हज़रते ज़ैद रदी अल्लाहू ताला अन्हु को नबी करीम मोहम्मद ﷺ  का लोग बेटा कहने लगे। हालांकि वह हुजूर मोहम्मद ﷺ के बेटे नहीं थे इसलिए हदीस में मुमानियत आई है।
 

हदीस की इबारत यहां पर नहीं लिखा गया है। (सह़ीह़ मुस्लिम शरीफ, जिल्द : 01 पेज़ : 80) सिर्फ उसका म मफहूम, मतलब यहां पर लिखा जा रहा है। 
उस हदीस से यह बात जाहिर है कि इल्म वाले जैसी शख्सियत, मोहतरम, मोअज़्ज़ज़ को उस के इल्म-व-फ़ज्ल की बुनियाद पर सैयद कहना जायज़ व दुरुस्त है। इसलिए कि यहां पर उसके मरातिब की बुनियाद पर कहा जाता है। जैसा कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे अपने उस्ताद आलिम-ए-दीन को सैयदी और स.न.दी जैसे शानो शौकत के साथ अच्छे-अच्छे अलक़ाब से याद करते हैं। दोस्तों याद रहे ! नसब के एतिबार से ग़ैर सैयद को सैयद कहना नाजायज़ और हराम है। इसलिए कि नसब के एतबार से सैयद का इस्तेमाल नबी करीम ﷺ के खानदान और आल के लिए खास है।

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