शफाअ़त की कितनी सूरत हैं।

हुज़ूर नबी करीम   ﷺ मैदाने महेश्वर में कई तरीके से लोगों की शफाअत फरमाएंगे‌। बहुत से लोग आप की शुफ़ाआत से बे-हिसाब-व-किताब जन्नत में दाखिल होंगे और बहुत लोग जो दोस्त के लायक होंगे हुजूर   ﷺ की सिफारिश से दोज़ख़ से बच जाएंगे और जन्नत में दाख़िल किए जाएंगे। और जो गुनाहगार मुसलमान जहन्नम में जा पहुंच चुके होंगे वह भी हुजूर सरकारे मुस्तफा   ﷺ  की शफ़ाअत करने से जहन्नम से निकाले जाएंगे। जो लोग जन्नती होंगे यानी जन्नत में जा चुके होंगे मेरे आक़ा करीम हुजूरपुर नूर   ﷺ उन लोगों की शफाअत करके उनके दरजात बुलन्द कराएंगे।




हशर के मैदान में कौन-कौन लोग शफाअत करेंगे।

हुज़ूर नबी करीम   ﷺ के इलावा बातें तमाम अंबिया इकराम, सहाबा इकराम, ओ़लमा-ए-दीन, औलिया अल्लाह, शोहद-ए-एज़ाम, हाफ़िज़-ए-क़ुरआन, हुज्जाज (हुज्जाज हाजी की जमा है तमाम हाजी लोग) भी मैदाने महशर में शफात करेंगे। जिन लोगों ने दुनिया में रहकर आली में दिन की खिदमत किए हैं वह लोग मैदाने महेश्वर में याद दिलाएंगे अगर किसी ने आलिम को दुनिया में वजू के लिए पानी ला कर दिया होगा तो वह भी याद दिला कर अपनी शफात के लिए कहेगा और आलिम-ए-दीन उसकी शफ़ाअत करेंगे। 


मैदान-ए-महशर का दिन जो 50,000 वर्ष का दिन होगा जिसमें काफ़ी मुसीबतें बेशुमार ना क़ाबिल बर्दाश्त लोगों के लिए होगा। यही दिन अंबिया, अवलिया और सालेहीन के लिए इतना हल्का कर दिया जाएगा जैसा कि मालूम होगा कि उसमें इतना वक्त लगा जितना कि एक वक्त की फ़र्ज़ नमाज़ में लगता है। बल्कि उससे भी कम यहांँ तक कि सालिहीन के लिए ऐसा होगा कि पलक झपक में सारा दिन तय हो जाएगा। मेरे अज़ीज़ भाइयों अल्लाह तआला की सबसे बड़ी निअ़मत उस दिन जो मुसलमान को मिलेगी वह अल्लाह तआला का दीदार है। 




हश्र के मैदान में हिसाब-व-किताब होने के बाद हर एक शख़्स को हमेश की के लिए अपना घर जाना होगा किसी को आराम का घर मिलेगा जिसके ऐश-व-आसाइश की कोई इंतिहान नहीं है उसको जन्नत कहते हैं। किसी को तकलीफ के घर में जाना पड़ेगा जिसकी तकलीफ की भी कोई हद नहीं उसे जहन्नम और दोज़ख़ कहते हैं।...! जन्नत दोज़ख़ ह़क़ है इनका इंकार करने वाला काफ़िर है। याद रहे के जन्नत और दोज़ख़ बन चुकी हैं और अब मौजूद हैं ऐसा नहीं कि क़यामत के दिन बनाई जाएगी।


क़यामत, मैदान-ए-महशर,हिसाब, सवाल, जनाब, जन्नत, दोज़ख़ सबके वही माना-व-मतलब है जो कि हर एक मुसलमानों में मशहूर हैं और जो लोग इनको हक़ समझे, मगर इनके माने का मतलब कुछ और समझे जैसा कि कोई कहे कि सवाब के मतलब यह है कि अपनी नेकियों को देखकर खुश हो ना और आज़ाब का मतलब यह समझे अपने बुरे अमल को देखकर रंज करना। या यह समझे के हश्र के मैदान में सिर्फ़ रूह़ों का हशर होगा बदन का नहीं तो ऐसा आदमी हक़ीक़त में इन चीज़ो का "मुनकीर" इनकार करने वाला है। और जो इनकार करने वाला है वह काफ़ीर है। क़यामत बेशक ज़रूर टक़ाइम होगी इसका इनकार करने वाला काफ़ीर है। 

आवाम पब्लिक कि जिहालत।

मेरे अज़ीज़ इस्लामी भाइयों ! हमारे समाज में अधिकतम लोग यह समझते हैं कि हशर यानी सवाब-व-ज़ाब सिर्फ रूह पर होगा नहीं यह गलत सोच है, बल्कि रूह़ और जिस्म दोनों पर होगा


नोट :  मेरे प्यारे अज़ीज़ भाइयों ! इस इस्लामिक पोस्ट को आप हज़रात ज़रूर शेयर करें अपने दोस्तों में।